योग के जरिये चमत्कार की आस

योग के जरिये चमत्कार की आस

योग भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का अभिन्न अंग माना जाता है। प्राचीन काल से यह माना जाता है कि योग के जरिये चमत्कार किए जा सकते हैं। कई लाइलाज बीमारियों में तो इसके एलोपैथी से भी ज्यादा कारगर होने की बात कही जाता है। हाल के दिनों में योग की लोकप्रियता देश ही नहीं विदेशों में भी बढ़ी है और इसके साथ ही कई ऐसे योग विशेषज्ञ शहरों में अपनी दुकान सजाकर बैठ गए हैं जो हर बीमारी का इलाज योग से करने का दावा करते हैं। यहां तक कि हृदय रोग जैसी जटिल बीमारी का इलाज भी योग से करने का दावा किया जाता है। मगर क्या सच में सिर्फ योग के भरोसे रहने से हृदय रोग का इलाज संभव है?  

नोएडा के प्रसिद्ध मेट्रो अस्पताल एवं हृदय रोग संस्थान के प्रमुख डॉक्टर पुरूषोत्तम लाल का कहना है कि दिल की बीमारी की शुरुआती अवस्था में योग प्रभावी वैकिल्पक इलाज है। इससे शरीर एवं दिमाग तनाव रहित बनाने में मदद मिलती है। यह भी एक तथ्य है कि अगर हृदय रोग की शुरुआती अवस्था में योग की मदद ली जाए तो बीमारी को गंभीर होने से कुछ हद तक रोका जा सकता है मगर इसके आगे योग कोई मदद करता है यह वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास कई ऐसे मरीज आ चुके हैं जो योग एवं आयुर्वेद से इलाज कराके निराश हो चुके थे। कई की हालत तो बेहद गंभीर हो चुकी थी।

जाहिर है कि ऐसे में मरीजों को यह सलाह नहीं दी जा सकती कि वो हृदय रोग जैसी बीमारी में योग के भरोसे बैठे रहें। डॉक्टर लाल कहते हैं कि दिल के रोग की हर अवस्था में योग या आयुर्वेद को रामबाण मानना जोखिम भरा है। दिल की मुख्य धमनी में 90 प्रतिशत तक अवरोध हो तो स्थिति नाजुक मानी जाएगी। ऐसी अवस्था में योग ओर आयुर्वेद दवा के भरोसे रहना अपने को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है।

दरअसल, इलाज की वैज्ञानिक विधि बाईपास या एंजियोप्लास्टी की निंदा सुनना आम लोगों के मन को भाता है क्योंकि ये खर्चीली विधियां हैं। योगाचार्य एवं आयुर्वेदिक डॉक्टर मरीजों का यह कहकर भावनात्मक शोषण करते हैं कि एंजियोप्लास्टी जैसी वैज्ञानिक विधियां डॉक्टरों के खाने-कमाने का जरिया भर है,  उनसे कोई फायदा नहीं होता है। मेरा मानना है कि ऐसा करना मरीजों की जान से खेलने जैसा है। डॉक्टर लाल कहते हैं कि धमनी में अगर 90 फीसदी अवरोध हो तो उसे पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं होता। ऐसे में ऐलोपैथी चिकित्सक भी एंजियोप्लास्टी करने के बावजूद मरीजों को कुछ खास व्यायाम और खान-पान में सुधार की सलाह देते हैं।

ये व्यायाम दरअसल योग का ही प्रकार होते हैं। इनकी मदद से धमनी के अवरोध को बढ़ने से रोकने में मदद मिलती है। इसलिए हम योगाचार्यों को भी सलाह देते हैं कि मरीजों की जान से न खेलें। पहले यह देख लें कि जो मरीज उनके पास आ रहे हैं वो किस हद तक बीमार हैं। इसके बाद ही अपना इलाज शुरू करें। अगर बीमारी गंभीर हो चुकी है तो उसे सिर्फ योग के भरोसे पर न रखें।

क्या आयुर्वेद में है हृदय रोग का इलाज

दूसरी ओर दिल्ली के मूलचंद अस्पताल के आयुर्वेद विभाग के अध्यक्ष डॉक्टस एस.वी. त्रिपाठी के अनुसार मनुष्य कितना भी सात्विक जीवन जी रहा हो जीवनचर्या में कभी न कभी कुछ गलती जरूर करता है। जीवनचर्या की गलती के कारण उसका बीमार पड़ना भी लाजमी है। डॉ. त्रिपाठी के अनुसार ह्दय रोग होने के प्रमुख कारण है अधिक वसा युक्त ठंडा भोजन, ज्यादा मीठा, अपच्य भोजन, धूम्रपान, अधिक चिंता करना,  नींद न आना इत्यादि। हालांकि व्यायाम न करना हृदय रोग का सबसे प्रमुख कारण है। आयुर्वेद में सबसे पहले यह देखा जाता है कि रोग की प्रकृति क्या है। हृदय रोग वातज, पित्तज और कफज तीन तरह के होते हैं। वातज में धमनियों में ब्लॉकेज होती है। पित्तज में हृदय में संक्रमण होता है और कफज में हृदय में सूजन होती है। हृदय रोग का इलाज संशोधन चिकित्सा विधि से किया जाता है जिसमें पंचकर्म और समशमन तकनीक अपनाई जाती है। इस रोग में जो औषधियां दी जाती हैं उनमें अर्जुन की छाल, शिलाजीत, लवणभास्कर आदि प्रमुख हैं। कुछ प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य भी पारंपरिक ज्ञान के नाम पर मरीजों को दी जाने वाली दवा का नाम नहीं बताते। ऐसे वैद्य कानून का उल्लंघन करने के साथ मरीजों से धोखाधड़ी कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ आयुर्वेदिक चिकित्सक मुक्तापिष्ठी जैसी दवा में स्टेरायड मिलाते हैं।

वैसे आयुर्वेद के साथ-साथ अन्य चिकित्सा पद्धतियां भी हृदय रोग में कारगर इलाज का दावा करती हैं। इसमें प्राकृतिक चिकित्सा भी शामिल है। दिल्ली के बापू नेचर क्योर अस्पताल और योगाश्रम की रूक्मिणी नायर का कहना है वह योग और प्राकृतिक चिकित्सा विधि द्वारा ह्दय रोग का इलाज करती हैं। इलाज से पहले रोगी की स्थिति का आकलन करना जरूरी होता है क्योंकि यदि रोगी की अवस्था के अनुसार क्रियाएं तय की जाती हैं।

अलग-अलग मरीजों को एक ही तरह की क्रियाएं करा दी जाएं तो लेने के देने पड़ सकते हैं। रोगियों को शुरू में पद्मासन, वज्रासन, शवासन, अनुलोम-विलोम आदि कराए जाते हैं जिनका सामान्यतः कोई अलग परिणाम नहीं होता। इसके साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा की जाती है जिसका आमतौर पर कोई साइड इफेक्ट नहीं होता मगर यदि किसी अयोग्य चिकित्सक से इसका इलाज कराया जाए तो नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस इलाज में मसाज एक प्रमुख विधि है मगर इसे पूरी तरह वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित होना चाहिए। इसी प्रकार जल चिकित्सा में यदि किसी मरीज को भाप स्नान दिया जा सकता है तो तापमान का ध्यान रखा जाना जरूरी है। 

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।